मुख्य धाराओं का विवरण निम्नानुसार है
–
धारा 6
–
प्रतिष्ठान ज्ञापन के संबंध में अपेक्षाएं -(1)
प्रत्येक सोसायटी के प्रतिष्ठान-ज्ञापन में निम्नलिखित
बातें कथित की जायेंगी-(क)
सोसायटी का नाम :
(ख)
सोसायटी के उददेश्य :
(ग)
सोसायटी के प्रधान कार्यालय का स्थान :
(घ)
गव्हनर्रों,
परिषद,
संचालकों,
समिति या अन्य शासी निकाय,
जिसे सोसायटी के विनियमों द्वारा सोसायटी के कामकाज का प्रबंध
सौंपा गया हो,
के नाम,
पते तथा उनकी उपजीविकाएं|
(2)
प्रतिष्ठान ज्ञापन में कोई भी ऐसा नाम प्रस्थापित नहीं किया
जायेगा-(क) जो उस नाम के,
जिसके कि कोई विद्यमान सोसायटी राज्य में कहीं भी तत्पूर्व
रजिस्ट्रीकृत की गयी हो,
समान हो या अत्यधिक सदृश हो : या
(ख)
जो-
(एक) ऐसे शब्दों से बनता हो जो भारत सरकार का या किसी राज्य की
सरकार का प्रतिश्रय व्यंजित करते हों या व्यंजित करने के
लिये प्रकल्पित हो,
या
(दो)
राष्ट्रीय,
अन्तर्राष्ट्रीय या विश्वव्यापी महत्व के ऐसे शब्दों से या
ऐसे अन्य शब्दों से बनता हो जिन्हें किराज्य सरकार,
समय- समय पर अधिसूचना द्वारा विनिदिर्ष्ट करें,
या
(तीन)
ऐसे शब्दों से बनता हो,
जिनसे किरजिस्ट्रार की राय में जनता को भ्रम होना संभाव्य हो|
(3)
सोसायटी के विनियमों की एक प्रतिलिपि,
जिसे शासी निकाय के सदस्यों में से कम से कम तीन सदस्यों
द्वारा सही प्रतिलिपिप्रमाणित किया गया हो,
प्रतिष्ठान ज्ञापन के साथ फाईल की जायेगी|
(4)
वे व्यक्तिजिनके द्वारा जिनकी ओर से ऐसा ज्ञापन प्रस्तुत
किया जाये,
सोसायटी के बारे में ऐसी और जानकारी देंगे,
जैसी किरजिस्ट्रार अपेक्षित करें|
धारा 7:-
रजिस्ट्रीकरण
–
यदि
रजिस्ट्रार का यह समाधान हो जाये कि सोसायटी ने इस अधिनियम के
तथा उसके अधीन बनाये गये नियमों के उपबन्धों का अनुपालन कर दिया
है और यह कि उसके प्रस्थापित विनियम उक्त उपबन्धों के
प्रतिकूल नहीं है,तो वह ऐसी फीस का संदाय करने पर,
जो कि विहित की जाये,
सोसायटी और उसके विनियमों को रजिस्ट्रीकृत करेगा और
रजिस्ट्रीकरण का प्रमाण पत्र जारी करेगा|
धारा 8 :- रजिस्ट्रीकरण का साक्ष्य -
रजिस्ट्रार द्वारा हस्ताक्षरित रजिस्ट्रीकरण प्रमाण पत्र जब
तक कियह साबित न कर दिया जाये किसोसायटी रजिस्ट्रीकरण रद्द
कर दिया गया है इस बात का निश्चायक साक्ष्य होगा किउसमें
वर्णित सोसायटी सम्यक रूप से रजिस्ट्रीकृत है|
धारा 10 :- रजिस्ट्रीकृत सोसायटी के ज्ञापन व विनियमों या
उपविधियों के संशोधन-
(1)
रजिस्ट्रीकृत सोसायटी के प्रतिष्ठान
–
ज्ञापन या विनियमों का कोई भी संशोधन तब तक विधिमान्य नहीं
होगा जब तक कि
वह संशोधन इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत न कर लिया गया हो|
(2)
ऐसे संशोधन के लिये प्रत्येक प्रस्थापना ऐसे प्ररूप में तथा ऐसी
फीस के साथ,
जैसी किविहित की जाए रजिस्ट्रार को अग्रेषित की जाएगी और
यदि
रजिस्ट्रार को यह समाधान हो जाये कि
संशोधन इस अधिनियम या उसके अधीन बनाये गये नियमों के प्रतिकूल
नहीं है,
तो वह यदि
उचित समझे,
संशोधन को रजिस्ट्रीकृत कर सकेगा|
(3)
यहाँ कोई संशोधन उपधारा (2) के अधीन रजिस्ट्रीकृत किया गया हो,
वह रजिस्ट्रार धारा 29 में विनिदिर्ष्ट की गई फीस का संदाय
करने पर,
संशोधन की एक प्रतिलिपि
जो किउसके द्वारा प्रमाणित की जायेगी,
सोसायटी को देगा जो इस बात का निश्चायक साक्ष्य होगा किवह
संशोधन सम्यक रूपेण रजिस्ट्रीकृत है|
धारा 11:- सोसायटी के ज्ञापन या विनियमों आदिको संशोधित करने
की रजिस्ट्रार
की शक्ति-
(1)
इस अधिनियम या उसके अधीन बनाये गये नियमों में अन्तविर्ष्ट
किसी बात के होते हुये भी,
यदि
रजिस्ट्रार यह समझे कि
किसी सोसायटी के प्रतिष्ठान ज्ञापन या उपविधियों में कोई
संशोधन किया जाना उस सोसायटी के हित में आवश्यक या वांछनीय है
तो वह लिखित आदेश द्वारा,
जिसकी तामील उस सोसायटी पर विहित रीतिमें की जायेगी,
उस सोसायटी से यह अपेक्षा कर सकेगा कि
वह ऐसे समय के भीतर,
जो किऐसे आदेश में विनिदिर्ष्ट किया जाये,
वह उस संशोधन को करें|
(2)
यदि
वह सोसायटी उस समय के भीतर जो कि
रजिस्ट्रार द्वारा उपधारा (1) के अधीन अपने आदेश में
विनिदिर्ष्ट किया गया हो,
कोई ऐसा संशोधन करने से चूक जाय,
तो रजिस्ट्रार उस सोसायटी को उसकी आपत्तियॉं,
यदि
कोई हों,
कथित करने का अवसर देने के पश्चात-
(क)
प्रतिष्ठान- ज्ञापन या विनियमों के ऐसे संशोधन को रजिस्टर
में दर्ज करेगा और उसकी एक प्रमाणित प्रतिलिपि
उस सोसायटी को भेजेगा,
या
(ख)
उपविधियों में ऐसा संशोधन करेगा और उसकी एक प्रमाणित उस सोसायटी
को भेजेगा,
और तदुपरिप्रतिष्ठान ज्ञापन या विनियमों या उपविधियों का
ऐसा संशोधन उस सोसायटी तथा उसके सदस्यों को आबद्धकर होगा
|
धारा 12 :-
सोसायटी के नाम की तब्दीली-
कोई भी रजिस्ट्रीकृत सोसायटी धारा 14 के उपबन्धों के अध्यधीन
रहते हुये,
अपने नाम की तब्दीली,
इस प्रयोजन के लिये बुलाये गये साधारण सम्मिलन में अपने
सदस्यों की कुल संख्या के कम से कम दो तिहाई सदस्यों की
सम्पत्तिसे पारित संकल्प द्वारा कर सकेगी|
धारा 13 :-
नाम तब्दीली की सूचना
–
(1)
धारा 12 के अधीन पारित किये गये संकल्प की एक प्रतिलिपि
रजिस्ट्रार को भेजी जायेगी|
(2)
यदि
रजिस्ट्रार का यह समाधान हो जाये कि नाम की तब्दीली के बारे
में इस अधिनियम के उपबन्धों का अनुपालन हो गया तथा यह समाधान हो
जाये कि प्रस्थापित नाम धारा 6 की उपधारा (2) के उपबन्धों के
अनुरूप है तो वह पूर्ववर्ती नाम के स्थान पर रजिस्टर में नया
नाम दर्ज करेगा तथा दर्ज किया जाने का प्रमाण पत्र उसमें आवश्यक
परिवर्तन सन्निविष्ट करके जारी करेगा तथा नाम की तब्दीली ऐसा
प्रमाण पत्र जारी होने पर ही पूर्ण एवं प्रभावी होगी|
(3)
रजिस्ट्रार सोसायटी के ज्ञापन प्रतिष्ठान में भी आवश्यक
परिवर्तन करेगा|
(4)
रजिस्ट्रार उपधारा (2) के अधीन जारी किये गये प्रमाण पत्र की
किसी भी प्रतिलिपि के लिये एक रूपया फीस लेगा और इस प्रकार
संदत्त समस्त फीस का राज्य सरकार को लेखा दिया जायेगा|
धारा 16 :-
सदस्यों का रजिस्टर-
(1)
प्रतिष्ठान-ज्ञापन के हस्ताक्षरकर्ता सोसायटी के प्रथम सदस्य
होंगे|
(2)
प्रत्येक सोसायटी अपने सदस्यों का एक रजिस्टर अपने प्रधान
कार्यालय में बनाये रखेगी और उसमें निम्नलिखित विशिष्टियॉं
दर्ज करेंगी,
अर्थात्-
(क) प्रत्येक सदस्य का नाम,
पता तथा तारीख सहित हस्ताक्षर;
(ख)
वह तारीख जिसको कि सदस्यों को प्रवेश दिया गया हो;
(ग) वह तारीख जिसको कि सदस्य न रहे हो|
(3)
सदस्यों का रजिस्टर सोसायटी की सदस्यता का तथा उसमें दर्ज की
गई समस्त बातों का प्रथम दृष्टया साक्ष्य होगा:
परन्तु ऐसा कोई भी सदस्य जिसका अभिदान,
तत्समय छ: मास से अधिक की कालावधि से बकाया हो,
इस अधिनियम के अधीन सोसायटी की किन्हीं भी कार्यवाहियों में
मत देने का हकदार नहीं होगा|
(4)
यदि किसी सदस्य के प्रवेश या सदस्यता की समाप्ति के 30
दिन के भीतर सदस्यों के रजिस्टर में प्रविष्टियॉं न की जाए
तो व्यतिक्रम करने वाला प्रत्येक पदाधिकारी जुर्माने से जो
पॉंच सौ रूपये तक हो सकेगा,
दण्डनीय होगा|
दस्यों यता की समाप्तिकी की
धारा 17 :-
सदस्यों पर व्यक्तियों की भॉंतिवाद चलाए जाने के दायी होंगे
–
(1)
रजिस्ट्रीकृत सोसायटी के किसी भी ऐसे सदस्य के विरूद्ध,
जिस पर कोई अभिदान,
जिसका कि संदाय करने के लिए वह सोसायटी के विनियमों के अनुसार
आबद्ध हो,
बकाया हो या जो सोसायटी की कोई सम्पत्ति,
ऐसी रीति में या ऐसे समय के लिए,
जो ऐसे विनियमों के प्रतिकूल हों,
अपने कब्जे में रखेगा या निरूद्ध करेगा या सोसायटी की किसी
सम्पत्ति को क्षति पहुंचाएगा या उसे नष्ट करेगा,
ऐसे बकाया के लिए या सम्पत्ति के ऐसे निरोध,
क्षतिया विनाश से प्रोदभूत होने वाली नुकसनी के लिए इस
अधिनियम के उपबंध के अनुसार वाद चलाया जा सकेगा|
(2)
यदि प्रतिवादी किसी ऐसे वाद या अन्य कार्यवाही में जो कि
सोसायटी की प्रेरणा पर उसके विरूद्ध प्रस्तुत की गई हो,
किया गया हो,
सफल हो जाए और अपना खर्च वसूल करने के लिए न्याय निर्णित किया
जाए,
तो वह इस बात का चुनाव कर सकेगा कि उस खर्च की उस अधिकारी से,
जिसके कि नाम से वाद चलाया जायेगा या सोसायटी से,
वसूल करने की कार्यवाही करें और पश्चात् कथित मामले में उक्त
सोसायटी की सम्पत्ति के विरूद्ध इस अधिनियम के उपबन्ध के
अनुसार कार्यवाही करेगा|
धारा 18:- अपराधों के दोषी सदस्य व्यक्तियों की भॉंतिदण्डनीय
होंगे –
सोसायटी का कोई भी सदस्य,
जो ऐसी सोसायटी का कोई धन या अन्य सम्पत्ति
चुराएगा,
हडपेगा या गबन करेगा या जानबूझकर तथा विद्वेषतावश ऐसी सोसायटी की
सम्पत्ति को नष्ट करेगा या क्षति पहुँचायेगा या किसी विलेख,
बंधपत्र,
धन की प्राप्ति के लिए प्रतिभूतियां अन्य लिखित को
कूटरचित करेगा,
जिससे कि सोसायटी की निधियों को हानि पहुँचने की आशंका हो,
उसी प्रकार के अभियोजन के अधीन होगा और यदि सिद्ध दोष ठहराया
जाए,
तो वैसी ही रीति में दण्डित किए जाने का भागी होगा,
जिस प्रकार कि सदस्य से भिन्न कोई अन्य व्यक्ति उसी
प्रकार के अपराध के संबंध में अभियोजन के अधीन होता तथा दण्डित
किए जाने का भागी होता|
धारा 21 :-
(1)
सोसायटी स्थावर सम्पत्ति का अर्जन या विक्रय या अन्तरण
रजिस्ट्रार की पूर्व अनुज्ञा के बिना नहीं करेगी- सोसायटी
द्वारा कोई भी स्थावर सम्पत्ति रजिस्ट्रार की लिखित पूर्व
अनुज्ञा के बिना,
विक्रय द्वारा,
दान द्वारा या अन्यथा अर्जित या अन्तरित नहीं की जायेगी|
(2)
अर्जित या अन्तरित की गई सम्पत्ति का उपयोग,
सोसायटी के उद्देश्यों से भिन्न किसी उद्देश्य
के लिये तब तक नहीं किया जाएगा जब तक कि रजिस्ट्रार से
अनुज्ञा अभिप्राप्त न कर ली गई हो तथा दान की दशा में दाता की
लिखित सहमति भी अभिप्राप्त न कर ली गई हो|
(3)
उपधारा (1)
तथा (2)
के अधीन अनुज्ञा के लिये आवेदन ऐसे प्ररूप में ऐसे दस्तावेजों
सहित तथा ऐसी फीस के साथ, जैसी कि विहित की जाए,
किया जाएगा|
(4)
जहां कोई सोसायटी उपधारा (1) या (2) के उपबंधों का उल्लंधन करती
है वहां सोसायटी ऐसी रकम जैसी कि विहित की जाए,
रजिस्ट्रार द्वारा जारी नोटिस की तारीख से तीन मास के भीतर जमा
करने के लिए दायी होगी और यदि सोसायटी ऐसी रकम पूर्वोक्त समय के
भीतर जमा करने में असफल रहती है तो सोसायटी को धारा 34 के अधीन
निष्क्रिय समझा जाएगा|
धारा 25:- सोसायटी द्वारा लेखा पुस्तकों का रखा जाना -(1)
प्रत्येक सोसायटी अपने प्रधान कार्यालय पर निम्नलिखित के
संबंध में उचित लेखा रखेगी –
(क)
सोसायटी द्वारा प्राप्त की गयी तथा व्यय की गई समस्त धनराशियाँ
और वे बातें जिनकी की बाबत धनराशियॉं प्राप्त होती हो;
और
(ख)
सोसायटी की आस्तियॉं तथा दायित्व|
(2)
लेखा पुस्तकें,
सोसायटी के कार्यालय समय के दौरान,
सोसायटी के पदाधिकारी या सदस्यों के या रजिस्ट्रार के
निरीक्षण के लिये खुली रहेंगी|
(3)
उपधारा (1) के प्रयोजन के लिये,
उचित लेखा पुस्तकें उनमें विनिर्दिष्ट की गयी बातों के संबंध
में रखी गयी नहीं समझी जायेंगी यदि वे सोसायटी के कार्यकलापों की
स्थिति का सही तथा साफ चित्र प्रस्तुत न करती हों और उसके
संव्यहारों को स्पष्ट न करती हों|
धारा 27:- शासी निकाय की वार्षिक सूची फाईल की जायेगी-
प्रत्येक वर्ष में एक बार,
उस दिन के,
जिसको कि सोसायटी के विनियमों के अनुसार सोसायटी का वार्षिक
साधारण सम्मिलन किया गया हो,
पश्चात् आने वाले पैंतालीसवें दिन या उसके पूर्व या जब सोसायटी
के विनियम में वार्षिक साधारण सम्मिलन करने का उपबंध न हो तो
31 जनवरी से पैंतालीस दिन के भीतर,
सोसायटी के अध्यक्ष या सचिव द्वारा ऐसे प्ररूप में ऐसे
दस्तावेजों सहित तथा ऐसी फीस के साथ जो कि विहित की जाए,
शासी निकाय के पूरे नामों,
स्थायी पते तथा मुख्य उपजीविकाओं एवं अन्य बातों,
यदि कोई हों,
की एक सूची हस्ताक्षरों सहित रजिस्ट्रार के पास फाईल की जाएगी:
परन्तु रजिस्ट्रार,
लेखबद्ध किये जाने वाले कारणों से,
अनुपालन के लिए पन्द्रह दिन से अनधिक और समय दे सकेगा:
परन्तु यह और भी कियदिसोसायटी विहित समय सीमा के भीतर या बढाए
गए समय के भीतर,
सूची फाइल करने में असमर्थ रहती है तो वह,
विहित समय या बढाए गए के अन्तिम दिन से तीस दिन के भीतर सूची
ऐसी विलम्ब फीस के साथ,
जैसी किविहित की जाए,
फाइल कर सकेगी|
धारा 28:- संपरीक्षा तथा निरीक्षण-
(1)
प्रत्येक सोसायटी,
सोसायटी के वार्षिक साधारण सम्मिलन की तारीख से या जहां
विनियम में किसी वार्षिक सम्मिलन में उपबंध नहीं है वहां
प्रत्येक वर्ष अप्रैल माह की 30 तारीख से नब्बे दिन के भीतर
संपरीक्षकों द्वारा सम्यकरूपेण संपरीक्षित पूर्व
विशिष्टियों सहित आय तथा व्यय का विवरण,
पूर्ववर्ती वर्ष की संपरीक्षा रिपोर्ट तथा तुलन पत्र (बैलेन्स
शीट) समस्त वित्तीय क्रियाकलाप के साथ ऐसी फीस सहित जैसी कि
विहित की जाए,
रजिस्ट्रार को भेजेगी|
यदि सोसायटी उपर्युक्त विवरण नियत समय के भीतर भेजने में असफल
रहती है तो सोसायटी ऐसी विलम्ब फीस संदत्त करने की दायी होगी
जैसी कि विहित की जाए|
रजिस्ट्रार,
ऐसे विवरण के प्राप्त होने पर,
विवरण का सत्यापन करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि निधियों
का उपयोग सोसायटी और उसके उद्देश्यों की अभिवृद्धि के लिये
किया गया है और वह निधियों के उपयोग के संबंध में ऐसे अनुदेश भी
जारी कर सकेगा,
जैसा कि वह उचित समझे:
परन्तु एक लाख से अधिक का संव्यवहार करने वाली सोसायटी के लेखे
चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट द्वारा सम्यकरूपेण संपरीक्षित रूप में
रजिस्ट्रार को प्रस्तुत किए जाएंगे|
(2)
यदि रजिस्ट्रार विशेष संपरीक्षा करना आवश्यक समझे,
तो वह किसी भी सोसायटी के लेखाओं की संपरीक्षा स्वयं कर सकेगा या
उसके द्वारा इस संबंध में लिखित संधारण या विशेष आदेश द्वारा
प्राधिकृत किये गये किसी भी व्यक्ति से करवा सकेगा|
(3)
रजिस्ट्रार द्वारा,
लिखित साधारण या विशेष आदेश द्वारा इस संबंध में प्राधिकृत
किये गये किसी भी व्यक्ति की,
किसी सोसायटी की समस्त लेखा पुस्तकों तथा अन्य कागज पत्रों तक
समस्त समयों पर पहुँच होगी और सोसायटी का प्रत्येक अधिकारी
सोसायटी के लेखाओं तथा उसके कार्यकरण के बारे में ऐसी जानकारी देगा,
जो कि ऐसा निरीक्षण करने वाला व्यक्ति अपेक्षित करे|
धारा 29:- दस्तावेजों का निरीक्षण-
कोई भी व्यक्ति,
इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रार के पास फाइल किये गये समस्त
दस्तावेजों या उनमें से किसी भी दस्तावेज का निरीक्षण कर सकेगा
या ऐसी फीस जैसी किविहित की जाए,
के साथ आवेदन फाइल करके ऐसे किसी भी दस्तावेज की प्रतिलिपियां
उसका उद्धरण जो रजिस्ट्रार द्वारा प्रमाणित किया जायेगा,
की अपेक्षा कर सकेगा और ऐसी प्रमाणित प्रतिलिपि उसमें
अंतर्विष्ट
बातों के संबंध में चाहे वे किसी भी प्रकार की हों,
समस्त विधिक कार्यवाहियों में प्रथम दृष्ट्या साक्ष्य होंगी|
धारा 31:- जानकारी मंगाने की रजिस्ट्रार की शक्ति
(1)
जहॉं कि किसी ऐसे दस्तावेज का,
जिसका कि किसी सोसायटी द्वारा इस अधिनियम के अधीन
रजिस्ट्रार को प्रस्तुत किया जाना अपेक्षित है,
परिशीलन करने पर रजिस्ट्रार की राय हो कि कोई जानकारी या
स्पष्टीकरण इसलिये आवश्यक है कि जिससे ऐसी दस्तावेज उस
विषय की,
जिससे कि उसका संबंधित होना तात्पर्यित है,
पूर्ण विशिष्टियॉं दे सके,
तो वह दस्तावेज प्रस्तुत करने वाली सोसायटी से लिखित आदेश
द्वारा,
यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह ऐसी जानकारी या स्पष्टीकरण ऐसे समय
के भीतर जिसे कि वह उस आदेश में विनिर्दिष्ट करें,
लिखित में दे|
(2)
सोसायटी को उपधारा (1) के अधीन आदेश प्राप्त हो जाने पर,
सोसायटी का तथा समस्त ऐसे व्यक्तियों का,
जो कि सोसायटी के अधिकारी हैं,
यह कर्तव्य होगा कि वे अपनी शक्ति भर ऐसी जानकारी या
स्पष्टीकरण दें|
धारा 37:- अपराधों का संज्ञान-
(1)
प्रथम वर्ग के मजिस्ट्रेट के न्यायालय में निम्न श्रेणी का
कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय अपराध का विचारण
नहीं करेगा|
(2)
कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का
संज्ञान रजिस्ट्रार द्वारा या अन्य ऐसे व्यक्ति द्वारा,
जो कि उसके (रजिस्ट्रार के) द्वारा इस संबंध में लिखित में
प्राधिकृत किया गया हो,
किये गये परिवाद पर ही करेगा,
अन्यथा नहीं|
धारा 38:- धारा 27 का पालन न करने पर मिथ्या प्रविष्टिके
लिये शास्ति
(1)
यदि अध्यक्ष,
सचिव या कोई अन्य व्यक्ति,
जो सोसायटी के शासी निकाय के संकल्प द्वारा इस संबंध में
प्राधिकृत किया गया हो,
धारा 27 के उपबंधों का पालन न करे,
तो वह दोषसिद्ध पर जुर्माने से,
जो पॉंच सौ रूपये तक का हो सकेगा,
दण्डनीय होगा और चालू रहने वाले भंग की दशा में,
ऐसे अपराध के लिये प्रथम दोषसिद्धि के पश्चात,
भंग चालू रहने की कालावधि के दौरान प्रत्येक दिन के लिये पचास
रूपये से अनधिक जुर्माने से भी दंडनीय होगा
|
(2)
यदि कोई व्यक्ति धारा 27 द्वारा अपेक्षित की गई सूची में या
रजिस्ट्रार को भेजे गये किसी विवरण में या विनियम की
प्रतिलिपि में या विनियम में किये गये परिवर्तनों में
जानबूझकर कोई मिथ्या प्रविष्टियां उनमें कोई लोप करेगा या
करवाएगा,
तो वह दोषसिद्धि पर जुर्माने से,
जो दो हजार रूपये तक का हो सकेगा,
दण्डनीय होगा
|
धारा 39:-
धारा 28 तथा 31 के उल्लंघन के लिये शास्ति
यदि धारा 28 तथा 31 की उपधारा (2) में तथा निर्दिष्ट कोई
सोसायटी या कोई व्यक्ति उन धाराओं के अधीन अपेक्षित जानकारी या
स्पष्टीकरण देने से इंकार करेगा या देने में उपेक्षा करेगा तो वह
सोसायटी या ऐसा व्यक्ति दोषसिद्धि पर जुर्माने से,
जो प्रत्येक ऐसे अपराध की बाबत बीस रूपये तक हो सकेगा,
दण्डित किया जायेगा
|
धारा 40:- अपील-
(1) अपील निम्नलिखत को होगी-
(क)
यदि आदेश धारा 4 की उपधारा (1) के अधीन नियुक्त किए गए
रजिस्ट्रार द्वारा मूल मामले (केस) में या खण्ड (ख) के अधीन
अपील में किया गया है तो राज्य सरकार को;
(ख)
यदि आदेश,
धारा 4 की उपधारा (2) के अधीन नियुक्त
किए गए अधीनस्थ अधिकारियों या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा
किया गया है तो धारा 4 की उपधारा (1) के अधीन नियुक्त किए
रजिस्ट्रार को|
(2)
उपधारा (1) के अधीन अपील आदेश की संसूचना की तारीख के दो मास के
भीतर फाइल की जायेगी:
परन्तु अपील प्राधिकारी ऐसी कालावधि के अवसान होने के पश्चात
भी अपील ग्रहण कर सकेगा यदि अपीलार्थी अपील प्राधिकारी का यह
समाधान कर दें कि ऐसी कालावधि के भीतर अपील न करने के लिये उसके
पास पर्याप्त कारण था|
उपरोक्त अधिनियम के अधीन विभिन्न धाराओं में राज्य शासन
द्वारा निम्न शुल्क पारित किया गया है:-
अनुसूची
(नियम 4 देखिए)
फीस
(1) |
धारा 7 के अधीन
सोसाइटी का
रजिस्ट्रीकरण |
सामान्य
रूपये
5,000/-
तत्काल
रूपये
8,000/-
|
(2) |
धारा 7 के अधीन महिला मण्डल/युवक मण्डल का
रजिस्ट्रीकरण |
सामान्य
रूपये
2,000/-
तत्काल
रूपये
3,000/-
|
(3) |
नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग द्वारा
अधिसूचित अवैध कालोनियों के रहवासियों द्वारा गठित समितियों का
रजिस्ट्रीकरण (यह प्रावधान अधिसूचना तारीख से 03 वर्ष के लिये
लागू रहेगा) |
विलोपित |
(4) |
धारा 10 के अधीन प्रत्येक
संशोधन |
रूपये
2,000/- |
(5) |
धारा 21 की उपधारा (3) के अधीन:-
(क) उपधारा (1) के अधीन आवेदन
(एक) क्रय की अनुज्ञा के
लिए
5 लाख तक
5 लाख से अधिक किन्तु 15 लाख तक
15 लाख से अधिक किन्तु 25 लाख तक
25 लाख से अधिक किन्तु 50 लाख तक
50 लाख से अधिक
(दो) विक्रय की अनुज्ञा
के लिए
5 लाख तक
5 लाख से अधिक किन्तु 15 लाख तक
15 लाख से अधिक किन्तु 25 लाख तक
25 लाख से अधिक किन्तु 50 लाख तक
50 लाख से अधिक
(तीन) प्रत्येक दान के
लिये
(ख) उपधारा 2 के अधीन स्थावर
सम्पत्ति के अन्यथा उपयोग के लिए
|
रूपये 10,000/-
रूपये 20,000/-
रूपये 40,000/-
रूपये 80,000/-
रूपये 80,000/-
(+प्रत्येक 5
लाख अथवा उसके भाग पर रूपये 10,000/-)
रूपये 10,000/-
रूपये 20,000/-
रूपये 40,000/-
रूपये 80,000/-
रूपये 80,000/-
(+प्रत्येक 5
लाख अथवा उसके भाग पर रूपये 25,000/-)
रूपये 25,000/-
रेखांक (प्लान) की लागत का 10 प्रतिशत या
रूपये 50,000/- इनमें से जो भी अधिक हो |
(6) |
धारा 27 के अधीन
विवरणी प्रतिवर्ष |
रूपये 1,000/- |
(7) |
धारा 28 के अधीन
संपरीक्षित विवरण प्रतिवर्ष |
रूपये 1,000/- |
(8) |
धारा 29 के अधीन प्रतियां, निरीक्षण |
रूपये 20/- प्रति पृष्ठ सामान्य
निरीक्षण
रूपये 40/- प्रति पृष्ठ
तत्काल
रूपये 100/- निरीक्षण
के लिये प्रति रजिस्टर
रूपये 100/- निरीक्षण
विवरणी/ मूल फाईल |
उपरोक्त शुल्क कोषालय में चालान द्वारा निम्न मद में जमा कर
चालान की मूल प्रति के साथ कार्यालय में आवेदन प्राप्त किये
जाते हैं:-
चालान मद :-
1475 -अन्य सामान्य आर्थिक सेवाएं,
200
-अन्य व्यापारिक उपक्रमों का विनियमन
कार्यालय में एकल खिड़की व्यवस्था की गई है,
जिसके तहत प्रात: 10-30 बजे से दोपहर 01-30 बजे तक आवेदन प्राप्त
किये जाते हैं तथा प्रकरणों के निराकरण हेतु निश्चित दिनांक
दी जाती है एवं उसके उपरान्त समस्त प्रकार के आवेदन सामान्य डाक
से प्राप्त किये जाते हैं,
जिसके लिये कोई निश्चित दिनांक नहीं होती है|
सामान्यत: डाक का निराकरण एक सप्ताह के भीतर कार्यालय द्वारा
किया जाता है|
कार्यालय के द्वारा विभिन्न प्रकार के आवेदन पत्रों के प्रारूप
जैसे कि पंजीयन संबंधी प्रारूप,
धारा 27 का फार्म,
संशोधन फार्म,
धारा 21 का फार्म आदि नि:शुल्क प्रदान किये जाते हैं|
|